Saturday, January 2, 2010

तुम मस्त-मस्त, हम त्रस्त त्रस्त

पिछला साल भुलाए नहीं भुलता है। हर वक्त ज़हन में बीते साल की यादें ही घुम रही हैं। साल 2009 के सारे अनुभव कायदे से मेरे दिमाग और दिल पर हावी हो जाते हैं। इक्कतीस तारीख की रात के एल्कोहल का असर पहली जनवरी के सुबह तक तो उतर गया था। लेकिन पिछले साल की खुमारी अभी भी उतरने का नाम नहीं ले रही। राजनीति से लेकर बाजार की उठापटक नए साल के जायके को खराब किए जा रहे हैं। नए साल पर सोचता हूं अब कुछ नया होगा लेकिन पिछले साल की डिवलपमेंट स्टोरी पिछा छोड़ने का नाम नहीं ले रही। साल नया हो गया। लेकिन हमारी स्थिती पुराने साल के उबासी में ही गुम है। पिछले साल के राशन के बिल की अपेक्षा नए साल में शॉकिंग बिल आई है। पूरे डेढ़ गुना ज्यादा बिल आ पहुंचा है। अब ऐसे में पिछले साल को कोसा जाए या फिर नए साल को गरियाया जाए कुछ समझ में नहीं आ रहा। मन- मस्तिष्क डिसऑर्डर में हो चला है। दिल कहता है नए साल में जिंदगी की नई धुन छेड़ू। लेकिन जब मस्तिष्त कैलकुलेशन करने बैठता है तो रणभेरी बजने लगती है। जी में आता है कि सभी कालाबाजारियों को लाइन में खड़ा करके गोली मार दूं। या फिर खुद को फिदायिनों के माफिक नेताओं के मुर्गानशीन पार्टियों में धुआं-धुआं कर दूं।
साहब पिछले साल के गम इस साल भी पिछा नहीं छोड़ने वाले हैं। साल 2009 में हजारों रुपये के घोटालाबाज कोड़ा साहब भी इस साल में भी मौजूद हैं। राजनेताओं के गुरूजी फिर से झारखंड की कुर्सी पर विराजमान हुए। सुना है जमकर हॉर्स ट्रेडिंग हुई है। मालदार मंत्रालय के लिए जोड़-तोड़ खूब चले हैं। अब लूट-खसोट तो मचेगी ही। ऐसे में मन में सुबहा उठ रहा है कि इस साल भी झारखंड ही कहीं सबसे बड़ा घोटालाबाज न दे दे। अब इनके घोटाले की भरपाई भी हमारे ही जेब से होने वाली है। एन.डी. तिवारी का सेक्स स्कैंडल भी मन को भारी कर दिया। 84 की उम्र में...आय!.. हय!.. भाई, ये तो वही बात हो गई जैसे बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम। मेरे कई मित्र तिवारी जी के स्कैंडल की चर्चा पर आंह भरते नज़र आए। कईयों के संभोग का कोटर खाली है, लिहाजा तिवारी जी को कोसने में कोई कोताही नहीं बरते। उनके जुबान से बरबस ही फिसल जा रहा था-" साला जब बूढ़े जवानी के सागर में गोते लगाएंगे तो जवान किनारे पर बैठ खाली गरियाएंगे हीं"। माफी चाहूंगा लेकिन मेरा इरादा तिवारी जी को दुख पहुंचाना नहीं है। लेकिन जवानों के दिल पर जो दुख पहुंच रहा है वो तो देखा नहीं जाता। कई लोग कहते हैं...राजनीतिक बातों पर खामोश। बहरहाल मेरे नजरिए में पुराने साल के ये भूत भी पिछा नहीं छोड़ने वाले। भूत से मेरा मतलब मुद्दों से हैं, क्योंकि ऐसे ही मुद्दों के चलते ही संसद से मंहगाई का मुद्दा पता नहीं कहां गुल हो गया। 2009 गन्ना किसानों के लिए ऐतिहासिक साबित होने ही वाला था कि बाबरी विध्वंस, तेलंगाना इत्यादि मुद्दों ने उसकी गला घोंट दिए। लोगों के और भी सरोकार का मुद्दा उठता तब तक राजनीतिक रस्सा-कस्सी और सेक्स स्कैंडल जैसे मामलों ने पानी फेर दिया।
शुक्र है उन्नीस साल बाद एक लड़की रुचिका जो दुर्भाग्य से इस दुनियां में नहीं है उसको न्याय दिलाने की मुहीम पिछले साल में भी जोर पकड़ी और यकीन करता हूं कि उसके परिवार के 19 साल की लड़ाई का अंत ये साल तो ज़रूर ही कर देगा। वैसे कितना अच्छा होता जो क्षेत्र मीडिया की जद से दूर हैं वहां भी लोगों के द्वारा ऐसी ही इस साल में मुहीम चलाई जाती क्योंकि आज भी न जाने कितनी ही रुचिका जैसी बेबस लड़कियों की आत्माएं देश के दूर-दराज के शहरों और गांवों में सिसकियां ले रही हैं। प्लीज साल 2010...मेरी तुमसे एक गुजारिश है। मैं तुम्हारें मंहगाई के दंस क्षेलने को तैयार हूं। नेताओं के ऐशबाजी को भी पचा जाऊंगा। लेकिन तुम हमारे गांवों में और छोटे शहरों में रहने वाली असंख्य रुचिका जैसी लड़कियों को न्याय ज़रूर दिलाना।

2 comments:

Rachana Srivastwa said...

भगवान आपकी गुजारिश पूरी करे...क्य़ोंकि साल 2010 से हमें भी बहुत आशाएं हैं...

Razi Shahab said...

so nice