अब मैं उजड़ गया हूं..
साख से बिखर गया हूं
तीतर-बितर हो गया हूं...
चाहता हूं पा लू वो हौसला एक बार फिर से
जिसे कहीं दूर खुद दफन कर चुका हूं।।
मुझे याद है, वो हवन के मंत्र- जाप अभी भी
जब मैने अपने सारे धूप-कपूर स्वाहा कर दिए थे
उस अग्निकुंड में...
मैं उस राख को भभूति बना माथे पर लगाना चाहता हूं।।
ढूंढता फिर रहा हूं पैरों के निशान..इन सूखे पत्तों पर..
जिनके गिलेपन से गुजरा था रहगुजर बनकर
मैं फिर से उस दुत्कारे हुए मंजिल को पाना चाहता हूं।।
5 comments:
मित्र कविता की कुछ पंक्तियां हमारे जीवन को भी बहुत नजहीक से छू रही है। लेकिन आपकी सोच और लेखन की तारीफ में क्या कहु..बस यही कह सकता हूं... अदभूत...आशा आपकी ऐसी रचना आगे भी मिलती रहेंगी और आपके जीवन की कुछ अनछुए पहलु से अवगत होता रहुंगा।
नये साल की ढेर बधाईयों के साथ
आपका
एक मित्र
मानस भाई आपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं.....
भावपूर्ण रचना!
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाने का संकल्प लें और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
- यही हिंदी चिट्ठाजगत और हिन्दी की सच्ची सेवा है।-
नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
अच्छी रचना .. आपके और आपके परिवार के लिए भी नववर्ष मंगलमय हो !!
achchi rachna dost...haan shayad साख जो तुम ने दूसरी लाईन में लिखा है वह शाख़ है यानी पेड़ की ड़ाली...शायद वैसा नया साल मुबारक हो दोस्त...
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