Sunday, February 28, 2010

जोगीरा सारा रा रा....

गांव की होली की याद बड़ी आ रही है....ढोल की थाप के साथ घर-घर घुम के होली गाने की कसक दिल में उठ रही है। दिल्ली में बैठकर राजनीतिक जोगीरा गा कर होली मना रहा हूं..., ये जोगीरा आप भी गाईये...... सभी को होली की शुभकामनाएं.....

जोगीरा सारा रा रा.....जोगीरा सारा रा..रा..वाह जी वाह, वाह जोगीरा वाह
काले कोट और व्हाइट कॉलर में कौन बजट बनाया है, भईय़ा कौन बजट बनाया है
भूखे पेट जनता सूते, GDP में ग्रोथ पाया है...
चली जा देख चली जा..
प्रणव बाबू ने बजट बनाया, नया स्ट्रेटजी लाया है
धुक..धुक-- धुक..धुक चलेगी गाड़ी... तेल का दाम बढ़ाया है.
वाह जी वाह, वाह खिलाड़ी वाह

जोगीरा सारा रा रा रा रा...जोगीरा सारा रा रा
एक खेमा में दीदी रूसे, एक खेमा आडवानी
सत्ता पक्षे करूनानिधि मारे उल्टा बानी
रे फिर देख-देख हाय हाय हाय रे....

महंगाई ऐसी चीज है भाईया मुदई सौ बनाया है....
शरद पवार माथा पिटे, क्या खोया क्या पाया है।
देख चली जा देख चली जा.....चली जा देख चली जा

लोकतंत्र है कौन सी चिड़िया, कौन यार बनाया है
बढ़िया-बढ़िया बातों से किसने इसे सजाया है????
देख चली जा, चली जा.. देख चली जा
लोकतंत्र है जन का शासन, जनता ने बनाया है
रंग-बिरंगे चरित्तर वाले नेताओं से सजाया है
चली जा देख चली जा
वाह जी वाह, वाह खिलाड़ी वाह

जोगिरा सारा रा रा रारा...जोगिरा सारा रा रा रा रा
आख में चश्मा, हाथ में मोबाइल, भाषण है तुफानी
कौन सा ये प्राणी है भाईया बात करे जबानी ????
चली जा देख चली जा....
खदर का चमचम कुर्ता देख के, इतनी बात न जानीं
पैर में धूल ना हाथ में माटी, नेता है 'खानदानी'
ताक ताक ताक हाय हाय रे.....
जोगिरा सारा रा रा जोगिरा सारा रा रा
वाह खिलाड़ी वाह, वाह जोगिरा वाह

राजनीति का सूत्र बताओ, हूं लोफर लंफगा, भाई हूं लोफर लंफगा
एक बार में मंत्री बन जाऊ... जिंदगी हो जाए चगां, भाई जिंदगी हो जाए चंगा
देख चली जा, चली जा देख चली जा
राजनीति का मंत्र है सिखुआ.,...कहीं कराओ दंगा
फिर तुम राजा राजपाट के...बाकी कीट-पंतगा
रे.. फिर देख देख... हाय हाय रे.....

बुरा ना मानो होली है......

Sunday, February 21, 2010

ग़रीबी का बजट...एक कफ़न


संसद में बजट पेश होने वाला है..फिर से विकास दर का खाका रखा जाएगा और आम आदमी का हवाला देकर विपक्ष हंगामा मचाएगा। मेरी कुछ पसीजे हुए भाव.. सरकार के बजट के नाम।

सिंह साहेब के कोठी पर रात खूब जलसा था।
लखनऊ से बाई जी लोग आईं थीं।
पूरा जगरम था, खूब रेलम- पेलम था...
बुधना भी मस्त था, खूब कचरो-डभरो किया।

लेकिन देखो खेल तक़दीर का,
आज बुधना कोहार के घर भी मजमा लगा है,
गहमा - गहमी मची है ।
बुधना के घर जो भी नया रिश्तेदार जा रहा है,
दहाड़ फाड़ते हुए रोने की आवाज़ आ रही है।

दरोगा साहेब आए हैं, लाश ले जाने के लिए
क्योंकि बुधना अब नही रहा।
गले में फसरी लगा लिया था, निशान साफ- साफ है।

इधर दरोगा साहेब तुले हुए हैं, "ले चलो लाश का पंचनामा करना है"।
बुधना के माँई राग पकड़ पकड़ के रो रही है।
" काहें ले जा रहे हो इस ठठरी को
हड्डी का ढाचा ही तो बचा है, बस बोल नही रहा है, चल- फ़िर नहीं रहा।

पिछले आसाढ़ में मकई बोया था
पांच सौ बिगहा लगान पर, सोहिया- कोड़िया किया
लेकिन सब बर्बाद..
मकई के ठूठ में दाना नहीं, ठूंठे बचा था...
लड़की का इलाज करवाया
स्कूली खाना खाई के, अजलस्त पड़ गई थी।
दुहाई हो काली माई की, जम के मुंह से बची बिटिया

हामार बाबू,
अबगा के हड़िया, पातुकी, बर्तन माटी के बनाये थे .
लगन का दिन आ रहा है, बिक जायगा , पैसे आ जाएंगे,
लेकिन आन्ही- बरखा में
सब हेनक- बेनक हो गया .

और हुज़ूर,
लोग तो बियाह- शादी में रेडिमेड बर्तन में खाते- पीते हैं,
माटी का क्या काम?
साहू जी , सिंह साहेब के कर्जा तो और आफत,
पाहिले ही सिकम भर सूद चढा था,
पुरखा का ज़मीन रेहन पर चला गया.
और कर्जा, पापी पेट, जाहिल ज़िदंगी
बाबू हमर फसरी नहीं लगते तो और क्या करते .