Sunday, February 21, 2010
ग़रीबी का बजट...एक कफ़न
संसद में बजट पेश होने वाला है..फिर से विकास दर का खाका रखा जाएगा और आम आदमी का हवाला देकर विपक्ष हंगामा मचाएगा। मेरी कुछ पसीजे हुए भाव.. सरकार के बजट के नाम।
सिंह साहेब के कोठी पर रात खूब जलसा था।
लखनऊ से बाई जी लोग आईं थीं।
पूरा जगरम था, खूब रेलम- पेलम था...
बुधना भी मस्त था, खूब कचरो-डभरो किया।
लेकिन देखो खेल तक़दीर का,
आज बुधना कोहार के घर भी मजमा लगा है,
गहमा - गहमी मची है ।
बुधना के घर जो भी नया रिश्तेदार जा रहा है,
दहाड़ फाड़ते हुए रोने की आवाज़ आ रही है।
दरोगा साहेब आए हैं, लाश ले जाने के लिए
क्योंकि बुधना अब नही रहा।
गले में फसरी लगा लिया था, निशान साफ- साफ है।
इधर दरोगा साहेब तुले हुए हैं, "ले चलो लाश का पंचनामा करना है"।
बुधना के माँई राग पकड़ पकड़ के रो रही है।
" काहें ले जा रहे हो इस ठठरी को
हड्डी का ढाचा ही तो बचा है, बस बोल नही रहा है, चल- फ़िर नहीं रहा।
पिछले आसाढ़ में मकई बोया था
पांच सौ बिगहा लगान पर, सोहिया- कोड़िया किया
लेकिन सब बर्बाद..
मकई के ठूठ में दाना नहीं, ठूंठे बचा था...
लड़की का इलाज करवाया
स्कूली खाना खाई के, अजलस्त पड़ गई थी।
दुहाई हो काली माई की, जम के मुंह से बची बिटिया
हामार बाबू,
अबगा के हड़िया, पातुकी, बर्तन माटी के बनाये थे .
लगन का दिन आ रहा है, बिक जायगा , पैसे आ जाएंगे,
लेकिन आन्ही- बरखा में
सब हेनक- बेनक हो गया .
और हुज़ूर,
लोग तो बियाह- शादी में रेडिमेड बर्तन में खाते- पीते हैं,
माटी का क्या काम?
साहू जी , सिंह साहेब के कर्जा तो और आफत,
पाहिले ही सिकम भर सूद चढा था,
पुरखा का ज़मीन रेहन पर चला गया.
और कर्जा, पापी पेट, जाहिल ज़िदंगी
बाबू हमर फसरी नहीं लगते तो और क्या करते .
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2 comments:
दुहाई हो काली मा
bahut achcha likha hai bhai...exams aa rahe hain busy ho raha hoon padhai mein isiliye zyada blog par aana nahi hota hai ...aur likhte raho dost bahut achcha laga padhkar....
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