Sunday, December 13, 2009

पीएम भी पिटता है!

पीएम भी पिटता है। ये बात मैं आज ही जान पाया हूं। आज ही टीवी पर देखा कि इटली के प्रधानमंत्री सीलिवियो बर्लुस्कॉनी एक रैली में ऐसे पिटे की उनके जबड़े हिल गए। जनाब जबड़े ही नहीं बल्कि उनको दो दांत भी टूट गए और बेचारे पीएम साहब लहूलुहान हो गए। उनको मारने वाले कोई बीस पच्चीस भी नहीं थे। महज एक शख्स था। उस शख्स ने ऐसा घूसा जमाया कि पीएम बर्लुस्कॉनी दो दांत कड़ाक से टूट गए। लेकिन वो जो भी शख्स है..मानना पड़ेगा। ज़रूर ही उसका हाथ ढाई किलो वाला होगा। तभी तो महज एक शॉट और पीएम लहूलुहान। वैसे महामहीम बर्लुस्कॉनी मीडिया में अक्सर अपने विवादित बातों के लिए जाने जाते हैं। आए ना आए दिन कोई ऐसी बात कह देते हैं जो मीडिया कि सुर्खियां बन जाती हैं। लेकिन पहले वो अपनी बातों से चर्चा में रहते थे अब पिटाई के चलते उनका हाल चर्चा-ए-आम है।
भाई अब इस इंसानी जहन में कुलेली मची हुई है। क्या कारण रहा होगा कि कोई शख्स पीएम साहब की ही धुनाई कर दिया। वो भी खूनी धुनाई। क्या पीएम साहब उसके बारे में भी कुछ अंट-शंट बोले थे? या फिर पीटने वाला शख्स देशभक्ति के इमोशन में आके घूसा जड़ दिया हो। क्या पता कोई गुप्त घोटाले का पता चल गया हो। हो सकता है पीएम साहब कोई दुर्व्यवहार कर बैठे हों। तभी जनता के बीच गए पिट गए। आखिरकार लोकतंत्र जनता का ही तो शासन है। लेकिन एक और चीज खटक रही है। सुन रखा हूं कि वेस्ट की सुरक्षा व्यवस्था बड़ी ही चाक-चौबंद है। फिर कैसे पीएम साहब की पिटाई हो गई? इससे अच्छा तो हमारे देश की सुरक्षा व्यवस्था है। मधु कोड़ा सरीखे न जाने कितने नेता जनता के कोप से दूर हैं। मंदिर-मस्जिद पर राजनीति करने वाले कितने सुरक्षित हैं। जाति-पात पर राजनीति करने वालों पर मजाल की कोई हवा का झोंका भी असर डाल सके। क्षेत्रवाद की राजनीति करने वालों को प्रशासन कितना प्रोटेक्शन मुहैया करती है। लेकिन एक बात और खटक रही है। कहीं हमारे यहां सिर्फ गुलाम तो पैदा नहीं होते………….

3 comments:

prabhat gopal said...

किसी को पीटा जाना ठीक बात नहीं, भले ही वे कोई भी हों। विरोध का तरीका अहिंसात्मक ही होना चाहिए।.

Asha Joglekar said...

प्रभात जी से सहमत ।

पत्रकार said...

पहले कहीं से लिखना सीख चाचा, बिहारी टोन से बाहर निकल नहीं तो नुकसान होगा। लिखने के बाद एक बार पढ़ लिया कर... समझ आ जाएगा कि कहां बिहारी टोन आ रही है, लिख लिया हूं, सोचा हूं नहीं होता , लिख चुका हूं, मैंने सोचा है सही होता है। किसी से हिन्दी की कोचिंग लो। सुना है तुम मीडिया में ही काम करते हो। तब तो और जरूरी हो जाता है।