Wednesday, December 16, 2009

तात्कालिक स्वार्थ बनाम जलवायु संकट

आज प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह क्लाइमेट चेंज पर बैठक में हिस्सा लेने के लिए कोपेनहेगेन रवाना हो रहे हैं। हालांकि प्रधानमंत्री कोपेनहेगन जा तो ज़रूर रहे हैं लेकिन जानकारों के मुताबिक बैठक की सफलता पर सवालिया निशान जस का तस बना रहेगा। पर्यावरण संकट के इस सम्मेलन में शामिल राष्ट्र इसे एक पॉलिटिकल मुद्दा बनाकर चल रहे हैं। लिहाजा इस सम्मेलन का कोई सकारात्मक हल नहीं निकल पा रहा। विकसित देश जलवायु संबंधी सारे गिले-सिकवे विकासशील देशों पर थोप रहे हैं। जो शर्त विकसित देश विकासशील देशों पर लागू करने की जिद ठाने हैं..उन्हें वे खुद के ऊपर लागू करना ही नहीं चाहते । भारत और चीन सरीखे विकासशील देशों पर ये दबाव बनाया जा रहा है कि वे कार्बन कटौती के लिए कानूनी तौर पर हस्ताक्षर करें ताकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसकी जांच होती रहे। विकसित देशों का सौतेला व्यवहार भारत और चीन को रास नहीं आ रहा। जिसके चलते सम्मेलन के असफल होने की गुंजाइश कहीं अधिक बढ़ गई है। मूलत: देखा जाए तो विकसित देश विकासशील देशों की अपेक्षा इस बैठक के नाकाम होने में सबसे बड़ा किरदार निभा रहे हैं। पृथ्वी महाविनाश के तरफ अग्रसर है। एक लंबे समय से पर्यावरण के जानकार गला फाड़कर चिल्ला रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते ग्लेसियर पिघल रहे हैं और सागरों का पानी बढ़ता जा रहा है। हालात इस मोड़ पर आ पहुंचे हैं कि द्वीपों के डूबने का खचरा मडराने लगा है। ग्लोबल वॉर्मिंग का असर आज हर कोई अपने आस-पड़ोस में देख सकता है। कुछ ही दिनों पहले एक विश्वसनीय समाचार चैनल पर ख़बर देख रहा था जिसमें एक फुटेज में दिखाया गया कि कैसे ग्लेशियर में रहने वाला भालू आज अपने ही बच्चे को खाकर भूख मिटाने के लिए बाध्य है। कहीं ऐसा ना हो कि ये सिर्फ ध्रुवीय भालुओं की हालत आगे चलकर पूरे विश्व के जानवरों की आप बीती बन जाए और कहीं इंसान की भी नहीं। अगर दुनिया की सरकारों की बात छोड़ दें तो आम नागरिक, एक आम शहरी कार्बन एमिशन में अहम भूमिका अदा करता है। छोटी सी दूरी के लिए लोग गाड़ियों का प्रयोग करते हैं। बेतरतीब गीजर और एसी का इस्तेमाल करते हैं। बहरहाल इलक्ट्रॉनिक साजो-सामान बड़े पैमाने पर कार्बन पुट प्रिंट छोड़ रहे हैं। अब ऐसी हालत में वातावरण गर्म रहेगा ही। ग्लेसियर पिघलेंगे ही और बेमौसम आम के फल डालियों में लगेंगे ही।
पृथ्वी महाविनाश के तरफ अग्रसर है लेकिन विकास की आकाश गंगा बना चुके देश अपनी आंखे मूंदे हुए है। कोपेनहेगन में दुनिया भर से लोग पर्यावरण को बचाने की मुहीम लेकर पहुंचे हुए हैं। आए दिन रैलियां निकाली जा रही हैं। आए दिन पुलिस और प्रदर्शनकारियों में झड़पें हो रही है। कोपेनहेगन में एक तरफ लोगों का हूजूम है जो पर्यावरण को हर हालत में बचाने की मांग कर रहा है वही दूसरी तरफ उन राष्ट्रों का समूह है जो पर्यावरण समस्या को दरकिनार कर तात्कालिक स्वार्थ के तरफ ध्यान दे रहे हैं।

2 comments:

पत्रकार said...

बेहतर होता जनाब अगर आप क्लाइमेट चेंज को जलवायु परिवर्तन कहते...
शर्मा आती है अब तो हिन्दी लेखकों पर

Sonalika said...

badhia lekh.
likhate raho tumhari kalam hamesha behter hi likhti hai.