भारत महान का मंत्र
हमरा सबसे बड़ गणतंत्र
ये नारा बंद करो भाई......
काहे का गणतंत्र मना रहे हो? क्या तुम्हारी आंखे अंधी हो चुकी हैं? क्या तुम्हारी चेतनाओं ने महसूस करना छोड़ दिया है? क्या वर्चुअल लाइफ के आगोश में इतने मशगुल हो गए हो कि तुमने ये भी सोचना छोड़ दिया है कि तुम्हारे इतिहास के साथ क्या बर्ताव हुआ है और तुम्हारे भविष्य़ को क्या मोड़ दिया जा रहा है। मैं एक बार फिर से याद दिलाना चाहुंगा, उस संविधान को जो साठ साल पहले लिखा गया था। उसका क्या कहीं अता पता है? इंडिया इज ए सेक्युलर, सोशलिस्ट, रिपब्लिक एंड डेमोक्रेटिक कंट्री। क्या इन शब्दों को कहीं भी देश के किसी भी कोने में पाते हो? नहीं, हरगिज नहीं। कैडबरी और रॉल्स रॉयल की दुनिया से निकलो तो पता चलेगा कि देश की कितनी बड़ी आबादी एक रोटी के टुकड़े के लिए दिन-रात संघर्ष कर रही है। मीलों दूरी तय करने के लिए अपने जख्मी पैरों की तरफ एक निगाह देख भी नहीं रहा है। मेरे देश वासियों मैक-डॉनल्ड और केएफसी के चमकादार शीशों से बाहर भी तो झांको तो पता चले कि हमारे देश के किसान किस गुरबत में जिंदगी बिता रहे हैं। एक किसान की सबसे बड़ी जागीर, उसकी सल्तनत, उसका मान-अभिमान खेत होता है। जब उन खेतों में बीज डालता है, तो अपने घर में बधाईयां बजवाता है। आज उन घरों में बधाईयां बजनी बंद हो चुकी हैं। खेत सुने पड़े हैं और उनके चेहरे भी सूने पड़े हैं। ऊंची झतों से जरा नीचे तो देखों। ये तुम्हारे इंदिरा आवास योजना की उगाही किसी महल वाले की दिवार में संगमरमर फिट करने का काम कर रही है। रोज की जिंदगी को जीडीपी की कसौटी पर नही परखा जा सकता है। सच्चाई बिल्कुल अलग है।
18 साल से ऊपर के लोग क्यों भूल जाते हैं कि पैसे का दम-खम दिखाकर कैसे राजनीति हो रही है। सत्ता के दहलीज पर पहुंचने के लिए किस कदर के दांव-पेंच का इस्तेमाल किया जा रहा है। क्या कभी देखा है कि बिना पैसे वाला आदमी चुनाव लड़ रहा हो? जनाधार भी पैसे पर बनने लगे हैं। फिर अफरात पैसे के दम पर हो रही चुनावी प्रक्रीया को कैसे जनता का चुनाव मान रहे हो। 20 फीसदी वोट पाकर सत्ता हासिल करने वाले को कैसे जनता की सरकार कह सकते हो?
ओछी राजनीति के डकैतों को कोई भी सरकार सलाखों के पीछे नहीं घुसा पाई, ये क्यों नहीं सोच रहे हो? जिनके जंगल उन्हीं को लूट लिया गया। उन्हीं के धन-संपदा पर कितने अधिकारी करोड़ों के महल पिटवा लिये। ये क्यों नहीं देखते हो? क्यों सिर्फ ऑपरेशन कोबरा को देख रहे हो? उनकी छाती में धधकते असंतोष को क्यों नहीं भांपते हो? दोस्तों आज भी लोग नौकरशाही का थप्पड़ खा रहे हैं। आज भी पुलिस की लाठियां खा रहे हैं। आज भी जाति और मजहब के नाम पर भेद किया जा रहा है। क्षेत्रवाद का बोलबाला है। आधे से अधिक राज्य में नागरिक संविधान से इत्तेफाक नहीं रखते। लिहाजा उनका रेड-कॉरिडोर जोन बढ़ता जा रहा है। ये बात मस्तिष्क में हलचल क्यों नहीं पैदा कर रहीं कि ऐसा क्यों हो रहा है? पहले सांमतों के कोल्हू में आम जन पिसते थे अब इन तथाकथित नेताओं और माफियाओं के कोल्हू में पिस रहा है। जान-बूझकर अनजान बना हुआ है भारत। खोए हुए भारत का गौरव अभी वापस नहीं लौटा है। अपने भाईयों को अपने बेटों को, अपने दोस्तों को बताओं कि हमारा भारत अभी महान नहीं हुआ है। इसे महान बनाना है।
9 comments:
एक दम सही कहा!
आपकी बातों से सहमत.
हिन्दी लिखना सीखो। तुम जैसे लोग हिन्दी ही सही नहीं लिख पाते और बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। शर्म है मुझे तुम पर...
achchi post
आपका तेवर अच्छा लगा। आपके ब्लाग को अपने ब्लाग सूची में जोड़ा है। उम्मीद है आपको कोई एतराज न होगा।
रंगनाथ जी हमेशा आपका स्वागत रहेगा। आपकी सूची में जगह पाकर मुझे बेहद खुशी हुई ।
अमृत, बात सही लिखी है। इस दौर में बैचेनी बड़ी अच्छी चीज है।
उम्दा सोच
अमृत, तुमसे संपर्क का जरिया? मेरा ईमेल kapilwrting@gmail.com है।
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