काश के मैं चित्रकार होताबहकी सी अदा और मचलती शोखियों को
उतार देता अपने कैनवास पर
जैसे दिल की परत पर उभर गई है
तुम्हारी ही छवि...
काश के मैं संगीतकार होतासजा लेता तुम्हें अपने सुरों में
फिर आत्मा से लेकर अक्श तक
तुम ही तुम होती...मेरे करीब होती
काश के मैं एक कश्ती होता तुम्हारे हुस्न के भंवर में अटखेलियां खाता
बिन पतवार के.... तुम जहां ले चलती वही मेरा ठिकाना होता
लेकिन मेरा मुकद्दर साहिल है..
किनारों से बस तुम्हें निहारना ही मेरी फितरत है
तुम्हारी जवां लहरों का मेरे पास आना
और फिर आके सागर में समा जाना
बड़ी कसक...बड़ी टीस देता है..।।
4 comments:
काश कि तुम्हारी जगह मैं होता
ईश्वर की उस कृति को देख पाता
लेकिन मेरा मुकद्दर साहिल है..
किनारों से बस तुम्हें निहारना ही मेरी फितरत है
बेहतरीन...
अगर उस हसीं का नाम लिख दिया होता तो अच्छा होता...जनाब हमारी रातें तो करवट बदल- बदल के कटती हैं। एक वो हैं कि अपने घरों में आराम की नींद लेतें हैं।
अच्छी कृति है...अच्छी लगी तुम्हारी कविताएं
अमित कुमार सिंह
its really nice and Mast poetry yaar...
i m loving it!!!!!!!!
Post a Comment