Friday, January 30, 2009

मन रे तू काहे ना धीर धरे

बहुत दिनों से सोच रहा था कि कुछ लिखूं पर क्या लिखू इस पर माथापच्ची कुछ अधिक ही थी। ऐसा नही था कि विषयों की कमी थी या फिर भावों की कमी थी। दरअसल होता ऐसा, कि एक ही क्षण में ढेरों भाव उमड़ आते, कई मुद्दे एक साथ मस्तिस्क का फाटक ठकठकाने लगते और समय भी इतना नही रहता कि मैं सबको लिख सकूं। क्योंकि देर रात जब में एक- आध घंटा खाली होता हूं तभी मैं विचारों को लिखने बैठता हूं...बहरहाल इस दरम्यान कई ऐसे मुद्दे आए और लिखने के लिए बेचैन किए। मसलन स्लमडॉग और ऑस्कर रुपी फसल पर अमिताभी वर्षा, मेरे मित्र की शादी और उसकी नई लुगाई, क्राइम ब्रांच और क्राइम शो, गणतंत्र दिवस  इत्यादि इत्यादि। और हां एक महत्वपूर्ण व्यक्ति छूट ही गए। उनको भूलना भी खुद से बेमानी होगी। मेरा इशारा पीएम इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी जी की ओर है....दरअसल आडवाणी जी पहुंचे थे एक न्यूज़ चैनल द्वारा आयोजित अवार्ड फंक्शन में, जहां उन्हे लाइफ टाइम एचिवमेंट अवॉर्ड से नवाजा भी गया। अब साहब अवॉर्ड का माहौल था। अकले आडवानी जी थोड़े ही थे। फिल्मी गीत लिखने वाले प्रसून जोशी को भी बेस्ट लीरिसिस्ट का अवॉर्ड मिला। इसी बीच प्रसून द्वारा लिखित गाना बज उठा " मैं कभी बतलाता नहीं पर अंधेरे से डरता हूं मैं मां, भीड़ में यू ना छोड़ों मुझे घर लौटके भी आना पाउंगा" फिर क्या था कैमरा आडवाणी जी पर केंद्रित हो गया। होंठ कपकपा रहे थे आडवाणी जी के, आंखे नम हो रही थीं, चेहरे का भाव गहराता जा रहा था। शायद हमारे आडवाणी जी को अपनी मां याद आ गई थीं।
पब्लिक भी बड़ी घनचक्कर चीज है। कहां तक उनके रोने पर लोग कुछ भावपूर्ण विचार व्यक्त करते, उल्टा प्रश्न वाचक और विस्मियादि वोधकपूर्ण विचारों से माहौल को पाट दिया। कहीं पर लोगों द्वारा ही सुना " अरे, लोकसभा चुनाव आ रहा है, हर चीज का ट्रेंड बदल गया है मार्केटिंग का जमाना है। आज अपने ऑर्गनाइजेशन की मार्केटिंग करने से पहले खुद की मार्केटिंग करनी पड़ती है । आडवाणी जी लोकसभा के लिए खुद की मार्केटिंग कर रहे हैं। सब पब्लिसीटी का फंडा है।" बेवकूफ लोग! भाई मुझे तो बड़ी तकलीफ हुई। आज ही थोड़े अपने आडवाणी जी इस तिकड़म में पहले से ही माहिर हैं। कहां भाजपा की लोकसभा सीटें इकाई में होती थीं। जब से 'जय श्रीराम कमल निशान' का नारा दिया, धड़ से सीटों की गिनती दहाई में पहुंच गई। और न और, बिना जाने बूझे लोग बात करते हैं पब्लिसीटी की।
उफ़्फ! क्या जमाना आ गया है। हमारे आडवाणी जी पब्लिक प्लेस में अपने ह्रदय के भाव भी नही व्यक्त कर सकते हैं। सबको अपनी भावनाओं को प्रदर्शित करने का अधिकार है। आखिरकार मनुष्य एक भावुक प्राणी है। और वैसे भी भावुकता की उनकी यह पहली मिसाल थोड़े ही है इससे पहले भी हिंदुत्व की रथयात्रा करते-करते पाकिस्तानी मज़ार पर अपना श्रद्धा सुमन अर्पित कर चुके हैं। अब दुनिया लाख बवाल मचाए तो मचाए। राजनीति के सियार गला फाड़ कर हुंआ-हुंआ करे तो करे। अरे कितना भी है तो भाव है, भाव को मस्तिस्क द्वारा थोड़े ही ट्रिट किया जा सकता है। ये अलग बात है कि भावाभिव्यक्ति कर देने के थोड़े ही देर बाद हमारे माननीय पीएम इन वेटिंग मस्तिस्काभिव्यक्ति कर बैठते हैं। और पब्लिक अभी तीर-तुक्का करती ही है कि.....नया भाव कूंलाचे मार ही देता है। मन रे तू कहा ना धीर धरे....मुआ मन जो ना सो कराए, अब पब्लिक 'पीएम इन वेटिंग' साहब को हलके में लेना शुरू कर दी है। सबसे पहले तो इन मीडिया वालों को ही लिजिए...समारोह में आमंत्रित करते हैं, फलान-ठेकान अवार्ड से नवाजते हैं और माननीय पीएम इन वेटिंग साहब पर खबर भी बना देते हैं।। मुझे तो डर था कहीं मीडिया वाले लोगों से sms मंगाना शुरू न कर दे, कि बताएं 'आडवाणी जी के आंसू नकली थे या असली' या फिर किसी स्व अनुशासित चैनल द्वारा दर्शकों की राय मांगी जाय कि " आडवाणी के आंसू---(a) नकली थे (b) असली थे (c) लोगों की संवेदना हांसिल करने का तरीका (d) मां वाला गीत सुनकर रुलाई आना स्वभाविक है
शुक्र है कि किसी ने ऐसा दुस्साहस नही किया। एक तो पहले से ही ब्ला ब्ला एक्ट बनाने की कवायद जोर शोर से चल रही है। लेकिन एक ज़रूर बात कहूंगा आडवाणी साहब की लोकप्रियता गिराने में कंबख्त मीडिया ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है, जब ना तब ले दे के हलकी ख़बर बना देती है। आज-कल उनकी खबरे एक बुलेटिन से दूसरे बुलेटिन तक ही सिमट कर रह गई हैं और उनके सामने ही उनकी पार्टी में राजनीति का ककहरा पढ़ने वालों की न्यूज़ दो-दो दिन तक अख़बारों और टीवी की सुर्खियां बनी रहती हैं। और ना तो और पता नही किस खुराफाती ने 'पीएम इन वेटिंग' नाम दे दिया। अब तो हर अखबार में, ख़बरिया चैनलों में नाम से पहले 'पीएम इन वेटिंग' लगाया जा रहा है। अब तो लगता है कि जनता कहीं
लालकृष्ण आडवाणी का नाम भूलकर सिर्फ पीएम इन वेटिंग ही याद न रखे। कहीं आगामी चुनाव में कार्यकर्ता 'आडवाणी जिंदाबाद' की जगह 'पीएम इन वेटिंग' जिंदाबाद नही करने लगे। अब तो ऐसा लगता है जीवन के अंत समय में कहीं पीएम इन वेटिंग बनकर ही नही रह जायें। दूसरों से तो खैर निपट भी लेते लेकिन मोदीवाद की बयार और राजनाथी पछुआ ने तो तूल मचा के रख दिया है। प्रभु इतनी सारी परेशानियां, इतने सारे मुदई। अब मां की याद तो आएगी ही....और याद आएंगी तो आंसू का छलकना लाजिमी है। हाय! मन रे तू काहे नही धीर धरे......

4 comments:

Aadarsh Rathore said...

जिस उम्र के पड़ाव में वो हैं, उस उम्र में भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रहता। कुछ भी हो... मैं उन्हें युगपुरुष मानता हूं।

sandhyagupta said...

Aapki lekhni me dhaar hai.

अजित त्रिपाठी said...

अपनी अपनी सोच है,आप कुछ सोचते हैं
हम कुछ सोचते हैं
लेकिन आडवानी जैसे लोग बहुत कुछ सोचते हैं

Aadarsh Rathore said...

प्रभु हम इतना धीर नहीं धर सकते
कुछ लिखिए तो सही