आज फिर मैंने एक खबर पढ़ी की मध्यप्रदेश के चुनावी बयार में वहां के पर्यटन मंत्री तुकोजीराव को चुनाव आयोग के आदेश पर गिरफ्तार कर लिया गया। मंत्रीजी पर आरोप है कि उन्होंने सरकारी कामकाज में बाधा पहुंचाई। दरअसल मंत्री महोदय सत्ता के रौब में पिछले 5 सालों से जीते आ रहे हैं, इस दरम्यान मजाल किसी की, कि मंत्रीजी किसी सरकारी दफ्तर में जाएं और कोई बाबू टाइप कर्मचारी इनसे सवाल पूछने का दुस्साहस करे। वैसे तो मंत्री लोगों को इतनी फुरसत कहां कि वो दफ्तरों में जायें। अधिक्तर काम तो पत्र व्यवहार और दूरभाष पर ही समपन्न हो जाते हैं। लेकिन कार्यकाल के अंतिम वर्षों में जब मत्रीजी लोग दफ्तरों के चक्कर लगाएं तो उनके आराम परस्त ज़िंदगी पर कितना आघात पहुंचता होगा इसका अंदाजा एक सामान्य आदमी भी लगा सकता है। बहरहाल मंत्री जी पहुंचे थे दफ्तर में, शायद कोई तफ्तीश करनी थी या...कुछ और ...यह कहना तो मुश्किल है, भाई बिना देखे आरोप मढ़ना बहुत बुरी बात होती है। वैसे वहां पर किसी सरकारी मुलाज़िम ने उनसे प्रश्न कर बैठा और जो मंत्री जी की ख्वाहीश/रिक्वेस्ट थी उसकों वह सिरे से खारिझ कर दिया। अब यह मंत्री महोदय को नागवार गुजरना लाज़मी था फिर क्या था धुआधार अपशब्दों का गोला दागना शुरु कर दिए। चिखने-चिलाने पर तो किसी का ध्यान ही नही गया। दरअसल मंत्री जी पांच सालों तक विधान सभा में रहे हैं। वहां की संस्कृति का रंग इतनी जल्दी थोड़े ही छूटने वाला है।
पता नही ये, इलेक्शन कमीशनर भी टी. एन. सेसन के धूर चेले हो गये हैं, कभी-कभार तो इनको अपने पावर का इस्तेमाल करने को मिलता है.. फिर आव में नही रहते। शायद इन्हें पता नही कि विधान सभा से लेकर संसद तक इन्ही की तूती बोलती है। किसी दिन ऐसा प्रस्ताव पास करायेंगे कि इनकी घिघ्घी बंध जाएगी। कोई जनकल्याण वाला बिल थोड़े ही होगा कि अधर में लटका रहे। यह तो नेताकल्याण बील होगा एक ही सत्र में कानून बना देंगे।
अब एक-आध कर्तव्य परायण कर्मचारियों को कौन समझाये कि संविधान की चीजे बस अतिश्योक्ति मात्र ही हैं, हवा की चीज है, ज़मीन पर तो हमारे राजनीतिकगण होतें हैं उनके आदेश और अनुकंपा होती है, वैसे आज़ाद हिंदुस्तान की बुनियाद ही कुत्सित राजनाति है। देश आज़ाद हुआ था लोग थोड़े ही हुए थे। इनकों समझना चाहिए कि अगर आज़ाद होता तो पाट्य पुस्तकों में क्यों नही भगत सिंह की सच्चाईयों को रखा जाता है? क्यों नहीं सुभाष चंद्र बोस को सही रुप में रखा जाता है? क्यों नही अंबेडकर के शिकायतों को भी रखा जाता है जो कि गांधी और नेहरु से थी। क्यों नहीं आपात काल का जिक्र और उसके उद्देश्य को बताया जाता है?
4 comments:
मंत्रियों की भी आपने भली कही. यही तो एक काम है जिसे वह बखूबी निभा रहे हैं.
सही कहा अमृत
यही तो विडंबना है राष्ट्र की
इन सबके लिए हम ही दोषी हैं क्योंकि हम ही तो प्रजा हैं. यह सब भारत में ही संभव है. आभार.
http://mallar.wordpress.com
यही विडंबना है. देखा यह समाचार टीवी पर.
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