Friday, November 7, 2008

बहुत किया मतदान, बहुत दिया सम्मान

टीवी पर खबर देख रहा था कि अचानक एक ऐसी खबर सामने आई जिसको देख कर मुझे हंसी भी आई और बेतहाशा गुस्सा भी। दरअसल एक मंत्री महोदय चुनावी मान-मनौवल में पूर्व विधायक महोदया के पैरों पर गिरे हुए थे। मना रहे थे। कभी भी प्रत्यक्ष रुप से ऐसी चुनावी भक्ति नही देखा था। लोकतंत्र को नोटतंत्र बनते इसी वर्ष में देखा था अब चाटुकारीता तंत्र देख रहा हूं। ऐसा नही है कि पहले ऐसी घटनाएं नही होती थी। ज़रूर होती थीं लेकिन अब जो हो रहा है उसे क्या कहा जाय??? क्या भारतीय लोकतंत्र पहले से खहीं अधिक उदार हो गया है? या पहले से अधिक ढींठ हो गया है?
आज हम सबको दिख रहा है कि कैसे राजनीतिक टुच्चे टिकट पाने के लिए कहां और किस हद तक उतर रहे हैं। मैं इस भारत से और क्या अपेक्षा कर सकता हूं जहां पर चुनाव में प्रत्याशी बनने के लिए भी भाई-भतीजावाद का सहारा लेना पड़ता है। और महकमों की तो बात ही छोड़ दिजिए जिसमें मंत्री परस्त आदमी को धकाधक भर्ती किया जाता एवं पहले से पदासीन व्यक्ति को धमाकेदार पदोन्नति मिलती है। लेकिन आगामी चुनावों के मद्दे नज़र पार्टीयां और उनसे जुड़े नेतागण जिस तरीके से लोकतांत्रिक मूल्यों को तार-तार कर रहे हैं ...अफसोस, अफसोस कि जनता के तरफ से कोई सुगबुगाहट नही आ रही है। ना ही चर्चा में बने रहने वाले समाज सेवीयों के तरफ से कोई रुझान ही आ रहा है। वे भी जानते है कि पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नही किया जा सकता। इन चिरकूटों के ऐसे आचरण को देख कर कैसे कोई अपने मत का प्रयोग करे ? यहां तो सभी फटेहाल हैं। जिसके अंदर खुद के प्रति स्वाभिमान न हो वह देश के और देश की जनता के स्वाङिमान की रक्षा कैसे कर सकता है। मेरी राय में चुनाव का बहिष्कार करना चाहिए........

4 comments:

Aadarsh Rathore said...

अच्छी प्रस्तुति

Amit K Sagar said...

ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. खूब लिखें, खूब पढ़ें, स्वच्छ समाज का रूप धरें, बुराई को मिटायें, अच्छाई जगत को सिखाएं...खूब लिखें-लिखायें...
---
आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं.
---
अमित के. सागर
(उल्टा तीर)

दिगम्बर नासवा said...

बिल्कुल सही बात कही है आपने, मैंने भी वो करिक्रम देखा था टीवी पर

नैतिकता पतन की और जा रही है और पतन की शुरुआत हमारे नेता ही कर रहे हैं

तरूश्री शर्मा said...

अमृत जी,
पलायन तो किसी भी समस्या का हल नहीं है ना। हमारे घर के बाहर गंदा नाला बह रहा है उसे देखकर निकल जाने से तो गंदगी साफ नहीं होगी। क्यों ना आह्वान किया जाए कि सभी मिलकर इस नाले को साफ करें। कुछ ही तो जागरूक लोग हैं और वे भी मतदान नहीं करेंगे तो स्थितियां बदतर होती जाएंगी।