Friday, March 21, 2008

आत्महत्या

सिंहसाहेब के कोठी पर कल रात खूब जलसा हुआ था।
लखनोऊ से बाई जी आई हैं।
पूरा जगरम था, खूब रेलम - पेलम था।

लेकिन देखो खेल तक़दीर का,
बुधना कोहार के घर भी आज मजमा लगा है,
गहमा - गहमी मची है ।
बुधना के घर जो भी नया रिश्तेदार जा रहा है dahad फाड़ते हुए रोने की आवाज़, अन्दर से औरतों की आ रही है।

दरोगा साहेब आए है लाश ले जाने के
लिए क्योंकि बुधना अब नही रहा।
गले में फसरी लगा लिया था, गले पे निशान साफ - साफ है।

दरोगा साहेब तुले हुए हैं, "ले चलो लाश का पंचनामा करना है"।
बुधना के माँई , राग पकडी पकडी के रो रही है।
" काहे ले जा रहे हो इस ठठरी को
हड्डी का ढाचा ही टू बचा है , बस बोल नही रहा है, चल- फ़िर nahi raha hai
पिछले आसाढ़ में मकई बोया था.
पांच सौ बिगहा लगान पर सोहिया- कोडिया किया, लेकिन
सब बर्बाद..
मकई के ठूठ में दाना नहीं, ठूंठे बचा था .

लड़की का इलाज करवाया
स्कूली खाना खाई के, अजलस्त पड़ गई.
दुहाई हो काली माई की, जम के मुंह से बची बिटिया

हामार बाबू,
अबगा के हडिया, पातुकी, बर्तन माटी के बनाये थे .
लगन का दिन आ रहा है, बिक जायगा , पैसे आ जाएंगे,
इस आस में, लेकिन आन्ही- बरखा में
सब हेनक- बेनक हो गया .

और हुज़ूर,
लोग तो बियाह- शादी में रेडिमेड बर्तन में खाते - पीते है,
माटी का क्या काम?
साहू जी , सिंघ्जी का कर्जा तो और आफत,
पाहिले ही सिकम भर सूद चढा था,
पुरखा का ज़मीन रेहन पर चला गया.
और कर्जा, पापी पेट, जाहिल जिनिगी
बाबू हमर फसरी नहीं लगते तो और क्या करते .

Amrit




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