Saturday, August 6, 2011

कुछ भुला दिया...कुछ आत्मसात किया

उसने दौलत की चौकड़ी से रिश्तों की मयार लांघने की कोशिश की
मेरी संवेदनाएं बारिश बनी...और रिश्तों को गिला करती रहीं।।
उसने छाती से लिपटे चेहरे में हवस देखी...जो बेचैन था सिर्फ बेचैन
मैने आंचल में छुपा एक मासूम पाया....जिसके पास सुकून था...चाहत थी...आराम था।।

उसने जिंदगी में खुशियां लाने के लिए....ईंट और कंकरीट के जंगलों को फ़तह किया,
लोहा- लक्कड़ सब इकट्ठा किया...फिर चलते- फिरते शरीरों पर टूट पड़ा...नोचा..चबाया, फिर भी भूखा रहा
मैंने खुशियों का एक पेंड़ लगाया...उसे सिंचा...उसमें अपने भावनाओं की खाद डाली,
मेरी सलामती की दुवाओं ने उसे किट- पतंगो से बचाया...पेड़ बड़ा हुआ...अब उसकी छांव मेरे लिए है।।

अंहकार के बादलों से उसने अपमान की बारिश की...जो तेजाब से ज्यादा घातक और पीड़ादायक थी...
मैने उन्हें आत्मसात किया...उनका शोधन किया...वो तेजाब अब पानी है।
इंतजार है किसी प्यासे को पिलाने की।।
सुना है इतिहास खुद को दोहराता है....शायद वो कभी प्यासा मिलेगा..
तब उसे यही पानी पिलाउंगा।

2 comments:

Anonymous said...

गलतियां सुधार दी जाएं तो कुछ बात बने

आदर्श राठौर said...

ये कॉमेंट मैंने लिखा है.