Thursday, January 13, 2011

महंगाई: कौन तलाशे उपाय????


देश की जनता महंगाई की मार से सिसकियां ले रही है तो वहीं दूसरी तरफ हमारे नेता वाक युद्ध में मशगूल हैं। आरोप और प्रत्यारोपों के तीर एक दूसरे पर साधे जा रहे हैं। इससे किसी के इगो को ठेस पहुंच रहा है तो किसी को गठबंधन की मर्यादा का खयाल आ रहा है। कोई सरकार में स्थाईत्व की बात कर रहा है तो कोई सरकार की नाकामियों की उधेड़- बुन में लगा है। लेकिन किसी भी राजनेता की नज़र आम आदमी की थाली पर नहीं जा रही है। लोगों का एक- एक निवाला कितना महंगा हो गया है...इससे बेफिक्र हमारे राजनेता एक- दूसरे पर छिटाकशी करने में लगे। जितना दिमाग वे एक दूसरे कि आलोचना में खपा रहे हैं शायद वो इतना दिमाग अगर जनता की सुध लेने में लगाते तो आज महंगाई से निजात पाने में कुछ हद तक कामयाबी मिल गई होती। एक जनवरी को खत्म हुए सप्ताह में महंगाई दर भले ही नीचे आ गई हो लेकिन अभी भी आम आदमी की थाली से खाने- पीने की जरूरी चीजें बहुत दूर हैं। सरकार की सभी कोशिशों की बैंड बज गई है। लेकिन बावजूद इस पर और संजीदगी से विचार करने के हमारी राजनीति के धुरंधर अपनी- अपनी पार्टी की मयार को बचाने में लगे हैं। एक तरफ एनसीपी राहुल गांधी के उस बयान पर उन्हें इगोइस्ट करार दे रही है..जिसमें उन्होंने महंगाई पर काबू न पाने के लिए गठबंधन की राजनीति का रोना रोया था। तो वहीं दूसरी तरफ महाराष्ट्र की सरकार राहुल के बचाव में कशीदे पढ़ रही है। विरोध पार्टी बीजेपी को झंडा यात्रा से फुर्सत मिले तो वो कहीं जाकर आम आदमी की बात करे। दलगत राजनीति और शिर्ष नेताओं की चापलुसी के चकोह में आम जनता तिनके की भांति चक्कर काट रही है..। कैबिनेट की एक के बाद एख बैठकें हो रही हैं....लेकिन परिणाम कुछ भी निकल कर नहीं आ रहा। आज भी प्रधानमंत्री के आवास पर कैबिनेट की बैठक हुई लेकिन मंत्रियों ने बजाय मंहगाई पर कोई ठोस उपाय जताने के एक दूसरे- पर ही छिटाकशी शुरु कर दिए। नीतीजा ये रहा कि बैठक असफल रही। बैठक में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और कृषि मंत्री शरद पवार के बीच चीनी की कीमतों को लेकर तनातनी हो गई। नौबत ये आ गई कि प्रणव दा को मीटिंग छोड़ कर जाना पड़ा। हालांकि ये बात नहीं है कि महंगाई पर नियंत्रण नहीं लगा है लेकिन ये पहल ऊंट के मूंह में जीरा के बराबर है। पिछले पांच सप्ताह से जारी खाद्य मुद्रास्फीति की तेजी पर ब्रेक लगा है। एक जनवरी को खत्म हुए सप्ताह के दौरान दाल, गेहूं और आल के दामों में पौने दो फीसदी तक की गिरावट आई, लेकिन सब्जियों मे प्याज और दूध और अंडे की कीमतों में कोई फर्क नहीं आया। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने प्रेस कांफ्रेंस में खाद्यान्न महंगाई की दर को लेकर दहशत नहीं फैलाने को कहा और ये आश्वासन दिया कि महंगाई पर काबू पाने के लिए सरकार जल्द ही ठोस उपायों की घोषणा करेगी। लेकिन सरकार ऐसी पहले भी कई घोषणाएं कर चुकी हैं। ऐसे में जनता धर्य कैसे बनाए रखे। जिस ठोस उपाय की सरकार बात कर रही है उसे वो आखिर कब तक लागू करेगी??? वैसे सीधे तौर पर देखा जाए तो खाद्य महंगाई को कंट्रोल में लाने की जिम्मेदारी कृषि और खाद्य आपूर्ति मंत्री शरद पवार की है। लेकिन पवार महोदय पहले ही अपने हाथ खड़े कर चुके हैं और इसके लिए सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी बता रहे हैं। एक तरफ जनता महंगाई से त्राहि- त्राहि कर रही है तो वहीं दूसरी तरफ मंत्री जिम्मेदारी किसकी इस पर बहस कर रहे हैं।

1 comment:

Anonymous said...

प्रधानमंत्री अगर महंगाई पर लगाम नहीं लगा सकते तो सत्ता से बेदखल हो जाए...नैतिकता के आधार पर इनके समूचे मंत्रियों को इस्तीफा दे देना चाहिए...