Thursday, February 10, 2011

ज़िदंगी मेरी जान

उम्र का ऐसा पड़ाव जहां रिश्ते
छोड़ जाते हैं, कुछ तफ्सील से..
तो कुछ बेचैनी के साथ
फिर मतलब गिरेबान पकड़ कर
चिखने लगती है..गरियाने लगती है।
बचे- खुचे रिश्ते अपने पास बुलाते हैं,
गले से लगाते हैं, और फिर
अपने होने का हिसाब मांगने लगते हैं

1 comment:

वीना श्रीवास्तव said...

गले से लगाते हैं, और फिर
अपने होने का हिसाब मांगने लगते हैं

सही कहा है आपने...
ऐसे ही लिखते रहिए...आपको खूब सफलता मिले...ब्लॉग फॉलो कर रही हूं...