अपनों की जुदाई, घरों में मातम
इधर भी है...उधर भी
आंखों में खामोशी, गुजरे वक्त का धुआं
इधर भी है, उधर भी
छाती पिटती बेवाओं का हूजूम, सूनी गोद की आकुलाहट
इधर भी है...उधर भी ....
बदहवास चेहरों पर ग़मगीनियत की झलक
एक ही जैसी तो है
ये मद किसका है????
सत्ता तू बड़ी ही छिनार है...
तू इधर भी है और उधर भी ।
6 comments:
जय हो...
आपकी रचना में कुछ गहरा दर्द छिपा हुआ है। राजनीति से भी आप काफी खफा दिखते हैं।
realty is stranger than fictin my brother.
sach tum bhi jante ho aur mai bhi.
khamosh mai bhi hu aur tum bhi.
छाती पिटती बेवाओं का हूजूम, सूनी गोद की आकुलाहट
इधर भी है...उधर भी ....
बदहवास चेहरों पर ग़मगीनियत की झलक
एक ही जैसी तो है
ये मद किसका है????
सत्ता तू बड़ी ही छिनार है...
तू इधर भी है और उधर भी ।
बहुत सुंदर ....आपकी लेखनी प्रभावित करती है ....!!
बहुत सुंदर ....आपकी लेखनी प्रभावित करती है ....!!
निदा फाजली से प्रभावित लगते हो मियां...
"हिन्दू भी मजे मे हैं, मुसलमां भी मजे मे
इंसान परेशान यहां भी है, वहां भी।
उठता है दिलो-जां से धुंआ दोनों ही तरफ
ये मीर का दीवाना यहां भी है, वहां भी "
गर्म हवा फिल्म के अंत मे भी कुछ पंक्तियां है
"जो दूर से तूफां का करते हैं नज़ारा
उनके लिए तूफान यहां भी है, वहां भी
धारे मे जो मिल जाओगे बन जाओगे धारा
ये वक्त का ऐलान यहां भी है, वहां भी"
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