अपनों की जुदाई, घरों में मातम
इधर भी है...उधर भी
आंखों में खामोशी, गुजरे वक्त का धुआं
इधर भी है, उधर भी
छाती पिटती बेवाओं का हूजूम, सूनी गोद की आकुलाहट
इधर भी है...उधर भी ....
बदहवास चेहरों पर ग़मगीनियत की झलक
एक ही जैसी तो है
ये मद किसका है????
सत्ता तू बड़ी ही छिनार है...
तू इधर भी है और उधर भी ।