Saturday, May 5, 2012
यूपीएससी के रिजल्ट के अगले दिन मेरा दिन खराब...
सिविल सर्विसेज का जब भी रिजल्ट आता है...उस दिन मेरा दिन ख़राब हो जाता है...क्योंकि सुबह-सुबह ही अख़बार वाले रिजल्ट फ्रंट पेज पर छाप देते हैं औऱ जैसे ही मैं सुबह अख़बार लेकर अधखुली आंखों से हेडलाइन्स पढ़ता हूं..दिन की शुरूआत ही टीस और जलन से हो जाती है। धत्त!!! अख़बार वाले भीतर के पेजों में जगह नहीं दे सकते थे क्या? .और ये यूपीएससी वाले दोपहर में रिजल्ट आउट कर देते तो इनकी कौन सी इज्जत नीलाम हो जाती..? ससुरा रात के अंधेरे में चोर जैसा रिजल्ट आउट करते हैं और सुबह- सुबह अख़बार वाले ऐसे छापते हैं..मानों असल का न्यूज़ सेंस आज ही आया हो। ऐसा नहीं कि मैं कोई आईएएस बनने का शौक रखता हूं और शिक्षा का मज़दूर बनकर प्रतियोगिता की तैयारी करता हूं...। अदरअसल उस दिन सुबह- सुबह ही मेरे माता- पिता भी अख़बार पढ़ते हैं और बुझे दिल से मुझे याद कर लेते हैं। अखबारों में सिविल सर्विस विजेताओं का कभी चेहरा आपने देखा है..? एक दम से चेपूं लगते हैं...फोटों ऐसा लगता है...जैसे मारपीट कर बैठाया गया हो और कोई फोटोग्राफर सीटी बजारकर इशारा किया हो...और फिर खिंचिक....।
सुबह के अपराध बोध से अभी निकला नहीं रहता हूं..कि कंबख्त न्यूज चैनल वाले पकड़ लेते हैं। इनका क्या.. जबरी गला फाड़- फाड़ कर चिल्लाते हैं..ना कोई सिर होता है ना ही पैर। यूपीएससी का फुल फॉर्म बता नहीं होगा। विषय कौन- कौन से हैं ये पता नहीं होगा..अरे मैं कहता हूं हिदुंस्तान का इतिहास भूगोल ठीक से पता नहीं होगा...लगेंगे फर्जीफुल और रटे रटाए सवाल पेलने। आपने सोचा था इतनी बड़ी कामयाबी आपको मिलेगी...? कितना कठिन रहा सफर? नए लोगों के लिए क्या संदेश है? सफलता के पीछे किसका सहयोगा रहा? मुद्दे की बात नहीं पुछेंगे..कि विषयों का चुनाव केसे किया?..किस तरह से तैयारी शुरू कीं..? कहां से कोचिंग कीं और कितनी फीस दी..? नौकरी करने के लिए कोई दबाव परिवार से बन रहा था या नहीं..अगर बन रहा था..तो कैसे टैकल किया? इंटरव्यू में किस तरह के सवाल थे...कहां पर आपको दिक्कत हुई? सिस्टम का हिस्सा होने जा रही हैं/ रहे हैं... कोई प्लानिंग? ब्यूरोक्रेसी में भ्रष्टाचार चरम पर है, आप खुद को कैसे अलग रखेंगीं/ रखेंगे? वगैरा..वगैरा...। लेकिन नहीं, ऊपर से नीम चढ़ा करैला वाली कहावत चरितार्थ कर देते हैं...उनके परिवार को भी पकड़ लाते हैं। न्यूज़ चैनलों के स्टूडियों में टॉपर्स के मां- बाप को बैठा लिया जाता है..और डिस्कशन के नाम पर हम जैसों पर तीरों की बरसात की जाती है। आपके बेटी/ बेटे ने ये कर दिखाया...वो कर दिखाया...नाम रौशन कर दिखाया..ब्ला..ब्ला ब्ला.। अरे भाई हो गया....क्या ज़रूरत है इतना सब करने की। ये भी कहीं जाकर गुलामी ही न करेंगे। मजाल की अपने मन से कोई फैसला ले लें। लॉयन ऑर्डर अपने हिसाब से तय कर लें। यूपीएससी रात में रिजल्ट आउट कर ये संकेत देती है कि भईया हर काम चोर दरवाजे से करना है..। बस जो समझ जाता है वो नौकरशाही के टॉप पोजिशन पर पहुंच जाता है और जो नहीं समझता ..उसकी हालत आईपीएस नरेंद्र कुमार सरीखे अफसरों जैसी हो जाती है।
मेरे मां- बाप भी ना..। कहीं का नहीं छोड़े मुझे। कम से कम गांव के आवारा प्रजातियों के साथ रहने दिए होते तो...कसम से मुझे अखबार में छपने वाले विचित्र लोग सलामी ठोकते। लेकिन क्या कहें...उनकी ख्वाहिश भी एक दम ओल्ड फैशन्ड है। मेरा एक मित्र....नाम अभी लेना उचित नहीं...पहले मेरा घर वाले उसके साथ रहने से मना करते थे। कभी उसके साथ कहीं चला गया तो फिर डांट की फटकार लग जाती। अगर भूले- भटके संगत में फसाद कर दिया फिर तो जुतमपैजार तय था। क्योंकि मेरा मित्र इलाके का छटुआ आवारा था..लंपट था..। लेकिन जो भी था... था तो अफलातून। आज कल कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर लिया है। मस्त विधायकी का टिकट मिला था यूपी चुनाव में हालांकि हार गया था। फिर भी लाव- लश्कर के साथ जब चलता है, तो फिर उसका रुतबा देखने लायक होता है। जितने उसके छुटआ आवारा बाकी दोस्त थे सब अब ठेकेदार हो गए हैं। जबरदस्त लिंक बना है। नाली बनवाने से लेकर सड़क और दारू का ठीका भी उन्हें ही मिल रहा है। गले में मोटा सोना की चेन टालकर रोआब झाड़ते हैं। आपसे ये कहुं कि अब मेरे ही मां- बाप उससे सिखने की नसीहत देते हैं..तो फिर आप चौंक जाएंगे। भईया शुरू में सिद्धांत का पाठ पढ़ाकर बड़ा कर दिए। सत्य पर चलना...गुलामी बर्दाश्त नहीं। आगे चलकर जिन साथियों से मुलाकात हुई...वो भी ‘चे गुएआरा’ को फॉलो करने वाले मिल गए। ऐसे में भविष्य चिरकुट धाम में पहुंचेगा ही। लेकिन मैं कभी नहीं मांफ करुंगा इन अखबार वालों को..। ससुरा और दिन इनको न्यूज़ वैल्यू दिखाई नहीं देती। जब मणिपुर में 62 दिन का ब्लॉकेड था..लोग खाने से पीने तक के लिए तरस गए थे। बाकी दिन फ्रंट पेज पर ख़बर की जगह वीट हेयर रिमूवर की आड़ में कैटरीना का बदन देखने को मिल जाता है...तो कभी पूरा का पूरा पेज ही कॉरपोरेट जगत के नाम कर दिया जाता। लेकिन ताना दिलवाने का कोई मौका मिले तो इनकी बांझे खिल जाती हैं। तब कोई एडवर्टिजमेंट नहीं लगाते। हालांकि सबसे बड़े गुनहगार ये यूपीएससी वाले हैं...। अरे पैटर्न रखेंगे ढाक के तीन पात। क्या मतलब है ऐसे प्रश्नो का..हड़प्पा की खुदाई में क्या मिला था...। a- गेहूं b- शिवलिंग c- नर्तकी की मूर्ति- d- स्नानगृह e- या इनमें से कोई नहीं। अरे भई बीत गया सो बीत गया। लकीर के फकीर भए हैं। आजकल दुनिया फास्ट है। गूगल का जमाना है..। इंटर मारो...सारा इन्फॉर्मेशन आपके स्क्रीन पर। इतना इन्फॉर्मेशन की लेते नहीं लिया जाएगा। कुछ चीजें ठीक हुई हैं। लेकिन काहें नहीं पूरा ठीक किया जाता और हां पॉलिटिकल लोगों से शिकायत है। अपने तो माल काटते हैं..और ब्यूरोक्रेट्स बेचारों को ऐसा पब्लिक में शो ऑफ करवाते हैं कि मानों देश की नीति यही लोग तय कर देते हैं। शान-ओ- शौकत का चरम ब्यूरोक्रेसी ही है। जबकि नाच करे बानर और माल खाए मदारी। उसके बाद हम जैसों के आदरणीय माता- पिता जी आस बांध लेते हैं, जिससे हमारा कोई वास्ता ही नहीं है। लेकिन नहीं....साला द होल एजुकेशन सिस्टम इज क्रैप...। शिक्षा विभाग बहेंगवा हो गया है।
---नोट- अब और भड़ाष निकालुंगा तो पढ़ना मुश्किल हो जाएगा।
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