Thursday, March 15, 2012
बेवफाई के खिलाफ भी कानून बनता है यार.....
सदियों से लड़कियों के खिलाफ लड़के एक ऐसी सजा की मांग कर रहे हैं..जिसे आज तक कानूनी रूप से मान्यता नहीं दी गई है। इस मुद्दे पर चाहे राजशाही हो या लोकशाही किसी ने भी कानून बनाने की हिम्मत नहीं जुटाई। जी, मैं बात कर रहा हूं..लड़कियों की बेवफाई की। जिसके चलते करोड़ों युवाओं की जिंदगी तमाम हो रही है। बेवफाई की मार ऐसी है कि लाखों बेचारे तो आत्महत्या करना ही मुनासिब समझते हैं। मेरे मित्र के एक सर्वे में खुलासा हुआ कि 24 घंटे में अनगिनत लड़कों का दिल टूटता है..और असंख्य लड़के मुर्दे सरीखे हो जाते हैं। सवाल ये है कि आखिर लड़कियों के इस अत्याचार पर आज तक क्यों गाज नहीं गिरी? हर जगह महिलाओं को आरक्षण की बात चल रही है। संसद से लेकर सड़क तक आरक्षण चाहिए...चलिए ठीक है.... माना इन्हें जरूरत है। मेट्रो, रेल आदि में भी आरक्षण दिया गया कोई आपत्ति नहीं। लेकिन दिल तोड़ने में तो इन्हें जो जन्मजात कुदरती आरक्षण मिला है उसका क्या? हालात ये हैं कि इन्हें कुदरती आरक्षण ही नहीं संरक्षण भी मिला हुआ है। जी हां..सामाजिक संरक्षण और कानूनी संरक्षण दोनो। अगर कोई लड़का किसी लड़की का दिल तोड़ दे तो फिर देखिए। कसम खा के कहता हूं...पूरा समाज लामबंद हो जाएगा। थू- थू करेगा। मतलबी, फरेबी, बेवफा सनम, दिलफरेब, लौंडियाबाज जैसे तमाम शब्दों की उपाधि दे दी जाएगी। और लड़की अगर थाने की चौखट तक पहुंच गई तो थानेदार साहब कितनी धाराएं लगाएंगे कहना मुश्किल है। मसलन शारीरिक शोषण, मानसिक शोषण, यौन प्रताड़ना का मुकदमा ठुकेगा ही महिला संगठनों की जुतम-पैजार भी बदन का भूगोल बिगाड़ने के लिए काफी होगा। लेकिन इतिहास गवाह है..बेचारे लड़कों का दिल तोड़ने की सजा आज तक किसी लड़की को नहीं दी गई।
साथियों... ये लड़कियां सुन हसीना पागल दिवानी बनके डकैती डालती हैं और शान-ओ-शौकत से हाथ में मेहंदी भी लगवा लेती हैं। लेकिन इतिहास गवाह है, कि आज तक ना तो किसी धार्मिक ग्रंथ में और ना ही किसी कानून की किताब में इनकी कारस्तानी के खिलाफ कोई विधान बनाया गया। सबसे बड़ी दुख की बात ये है कि नियम-कानून बनाने वाले पुरूष ही रहे फिर भी इनकी बेवफाई के खिलाफ कोई कोई कानून नहीं बनाया गया। मैं समझता हूं.. यहीं चूक हो गई। पुरुष के अलावा किसी नारी से ही संविधान बनवा दिया जाता तो कसम से धाकड़ कानून बन जाता। क्योंकि मर्द ऐसी प्रजाति है कि पूछो मत। लड़कियों की फर्जी अदाओं पर इसे मरने का शौक है...छोरियों की नौटंकी समझ आएगी फिर भी हुस्न के सागर में छलांग मार देगा...ये अजब प्राणी मर्द..। अब भाई बडे-बड़े ऋषि-मुनी और देवता जब पानी मांग गए तो फिर इस अदने से जीव की क्या बिसात। इसी बात पर एक दिलचस्प वाकया बताते चलता हूं...दरअसल क्या हुआ कि...स्वर्ग में जाने के लिए मरे हुए लोगों की लंबी लाइन लगी हुईं थी। गेट पर भगवान का दूत अपने लाव-लश्कर के साथ खड़ा था। सभी लोगों से उनकी जिंदगी भर के कर्मों के बारे में पूछा जाता और कर्म के आधार में स्वर्ग में एंट्री दी जाती। जो मानक पर खरा नहीं उतरता उसे नर्क का रास्ता पकड़ा दिया जाता। जहां से यमदूत उन्हें घंसीट कर ले जाते थे। मेन गेट पर अब बारी- बारी से लोग आने लगे...एक आदमी गेट पर आकर खड़ा हुआ.... देवदूत ने उससे उसकी पहचान और कर्म के बारे में पूछा। आदमी बोला- मैं समाजसेवी रहा हूं। हिंदुस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में पोलिया और लेप्रोसी को मिटाने के लिए काफी काम किया हूं। देवदूत ने कहा कि इसे स्वर्ग में एंट्री दी जाए। फिर देवदूत ने लंबी कतार में लाल रंग में रगें हजारों लोगों को देखा और सभी को कतार से अलग करके पूछा आप सभी लोगों का कर्म क्या रहा है..कृपया बताइए। लालरंगा आदमियों के झूंड ने कहा-- हम मीडिल ईस्ट के शहीद हैं और उस लोकतंत्र को लाने की कोशिश में मारे गए हैं..जिसे अमेरिका थोपना हता था। देवदूत निराश हुआ और अपने साथियों को आदेश दिया-- कि चलो इन्हें भी एंट्री दे दो। बड़ा विश्वासघात हुआ है इनके साथ। इसी तरह सब बारी- बारी से अपनी पहचान और कर्म बता रहे थे और उन्हें उनके आधार पर स्वर्ग में एंट्री दी जा रही थी। तभी लाइन से अलग हरफनमौला की तरह ताबड़तोड़ क्रॉस कट चाल चलते हुए एक शख्सियत की गेट पर एंट्री हुई। दूत ने पूछा,पहचान और कर्म? शख्सियत का जवाब था--"लड़की" देवदूत की जुबान बंद हो गई....नरवस हो गया और फिर कुछ नहीं बोला... उसके सिपाहियों में होड़ सी मच गई कि मैडम को बिना किसी कष्ट के गेट के भीतर कैसे लाया जाए। स्वर्ग में घुसते ही रुआफजा से भरा गिलास थमा दिया गया। वायु देव मलय समीर बहाकर अभिवादन करने लगे। वरूण देव बारिश की फुहार बरसाने लगे।
तो जनाब सौ बात कि एक ही बात है..कि इतिहास अगर झंडू बाम बन गया तो क्या आज का वक्त भी दुलकी चाल पर दौड़ता रहेगा? साथियों...भले लोग हमें महिला विरोधी कहें...लेकिन याद रखना हमारा विरोध करने वालों का भी एक दिन ऐसा ही हश्र होगा...। अब समय आ गया है, कि दुनिया के सारे मर्द एक हो जांएं। साथियों!! दुनिया की सारी लड़कियां एक जैसी हैं और सारे मर्द एक जैसे। आखिर मर्द कब तक परवाना बनता रहेगा और समा की आग में जलता रहेगा। छोड़ दो ये बुझदिली और अपने साथ हुए अत्याचार के खिलाफ लामबंद हो जाओ। दुनिया की सभी लोकतांत्रिक सरकारों को हिम्मत दिखानी होगी और संविधान में संशोधन कर पुरुष अधिकारों की रक्षा करनी होगी। वहीं, सीआरपीसी में तब्दीली कर दिल तोड़ने की सजा का प्रावधान तय करना होगा। क्योंकि दिल टूटता है तो सिर्फ दिल ही नहीं बल्कि जिंदगी टूट जाती है और टूटी हुई चीज दोबारा नहीं जोड़ी जा सकती है।
नोट- उपरोक्त लेख से मेरा कोई लेना- देना नहीं है....अगर इससे कोई हर्ट होता है तो इसकी जिम्मेदारी मेरी नहीं है। ये लेख मेरे मित्र धर्मराज के लिए समर्पित--- सूचना मेरे हित में जारी।।
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