शायद मैं प्रभावित नहीं हूँ ,
तडके - भड़कते जीवन शैली से .
आलीशान महलो में रहने वालो से ,
उनके ख़ास सधे हुए अंदाज़ से
शायद मैं प्रभावित नहीं हूँ
भारत के आकाश चूमते सेंसेक्स की ऊचाइयों से .
विश्व के टॉप टेन की लिस्ट में ,
किसी ख़ास भारतीय के होने से.
क्योंकि,
मैं द्रवित होता हूँ
जब कभी मैं देखता हूँ,
दो टुक कपड़ो के सलवटों में,
लिपटी हुई यौवन को.
जब कभी मैं देखता हूँ
माँ की उस आड़ी- तिरछी खुली हुई छाती को
और उससे चिपके हुए नन्हें बच्चे को,
ठंठी से बचाती, भूख से छिछिआती उसकी आप-धापी को.
जब कभी मैं देखता हूँ
राजनीति के कुत्सित वातावरण को,
जिसके चलते लोग अभी भी खाते है,
पुलिस की लाठियाँ और गोलियां.
जब मैं देखता हूँ धर्म व जातिगत दंगों को,
नंगा करके असहाय औरतों को दौड़ाती
कुत्सित भीड़ की मानसिकता को.
जब कभी मैं देखता हूँ
साठ साल के उस किसान को.
उसकी आँखों में साल दर साल की छाई हुई गर्द को,
चहरे पे पड़ी झुर्रियों को.
जिसका फावड़ा वार कर रहा होता हैं ज़मीन पे
और आँखें टक-टकी लगाकर कर देखती हैं आकाश को।।
तो मित्र तुम भी बोरिंग क्यों नहीं हो जाते;
बोरिंग हो जाओ ना.......